वेदके विषयमें बात करना और निरुपण करना, समुद्रको छोटे तालाबके किनारे खड़ा रहकर, बताना है। पुरी दुनियामें, कहीं भी ब्रह्मांडके निरुपण की बात नहीं थी, ब्रह्मांडके विषयमें तो ठीक, पृथ्वीके विष्यमें गलत धारणाए थी, उससे पहले भरत खंडमें रहने वाले बुद्धिमान ऋषिमुनिओने लोगोंके दिलमें पुरे विश्वका निरुपण अथेति बता दीया था।
आज हमे जो वेद उपलब्ध है, वह वेदमें सर्वय विषयक निरुपण अथेति रहता है। परमात्मासे लेकर छोटे जन्तुके विषयमें भी बात कही गई है। वह वेदको श्रुति शब्दसे भी कहा जाता है। वेद का अर्थ ज्ञान होता है और वह ज्ञान परंपरा श्रवणसे होनेके कारन श्रुति शब्दसे वेदको कहा जाता है। कलियुग के प्रारंभ होते हुए कहीं कहीं अपनी रीतके अनुसार श्रुतिको, माने प्राप्त हुआ ज्ञान, लिखनेकी परंपरा शुरु हुई। लिखनेकी परंपरा भी पांच हजार साल पहेले शुरु हुई है, ऐसा आज संशोधक करते हुए पता चला है। प्रायः जरुरत ही नहीं थी क्योंकि बुद्धिते तेजस्वीताके कारन केवल श्रुतिसे या श्रवणसे प्राप्त ज्ञान ऐसे ही अक्षुण रहता था।
वेद का अर्थ ज्ञान होता है और वह ज्ञान परंपरा श्रवणसे होनेके कारन श्रुति शब्दसे वेदको कहा जाता है।
कलियुग के प्रारंभ होते हुए धीरे धीरे सब कुछ लिखनेकी परंपरा शुरु हो गई। आज हमारी पास जो उपलब्ध वेदकी प्राचिनतम ग्रंथके रुपमें प्रत हैं, वह भी इश्वी पूर्व १८००सो वर्ष पहलेकी तो है। आज यूनेस्को के पास जो ग्रंथ सुची है उसमें प्रायः १५८ सूची है, उसमें भारत की महत्वपूर्ण सूची ३८ है। उसमें वेद, स्मृतियां, ब्राह्मण और आगम आदि है।
वेद जो हमे परंपरासे प्राप्त हुए है और आज भी वैसी ही परंपरा अक्षुण चल रही है, उसीका कारन विद्वान और ब्रह्मनिष्ठ ब्राह्मण ही है। उस वेदमें परमात्माका यथार्थ निरुपण है, ब्रह्मांडका निरुपण है, विविध प्रकारके देवोंका निरुपण है, मानव जीवनमें परम उपयोगी रसायनका निरुपण है, अनेक प्रकारके औषधीका निरुपण है, खगोल, भूगोल, गणित ज्योतिष वगैरहका सबीज निरुपण वेदमें रहता है।
मानव समाजके घड़तरका निरुपण, तारामंडलका निरुपण, विविध रीतिओंका निरुपण सप्रमाण रहता है और भी बहुत कुछ उसमें बताया गया है। वेद के विषयमें ऐसा ऋषिमुनीओका कथन है कि जो वेदमें है, वही अन्यत्र है। जो वेदमें नहीं वह कहीं भी नहीं। इसलिए तो कहा जाता है कि अपनी सर्वप्रकारनी समस्याका समाधान वेद से ही होता है। दुनियामें आज जो कुछ ज्ञान प्राप्त होता है, वह सब कुछ वेदका ही अंश है।
स्वामिनारायण भगवानने अपने ग्रंथमें इसलिए तो वेदका स्थान प्रथम दिया है। स्वामिनारायण संप्रदायके अन्य ग्रंथ हो या अन्य परंपराका ग्रंथ हो, उन सभीमें वेदका ही निरुपण अपनी अपनी बुद्धिके अनुसार कीया गया है।
मानव समाजका सभ्यताका दर्शन वेदसे ही प्रारंभ होता है और मानव के लिए कुछ लिखा हुआ ज्ञानका भंडार हो तो एक केवल वेद ही प्राचिनतम दस्तावेज है। वेदोंकी आज भी हमारे पास २८ हजार पांडुलिपियांमें अलग अलग प्रतीयां उपलब्ध है। वह वेदोंकी प्रतीयां, जो कि पुणेमें ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं। उसमें ३० ऋगवेदकी, बहुत ही महत्वपूर्ण पांडुलीपियां है।
वेदके विषयमें एसा कथन है कि वेद का ज्ञान स्वयं पूर्ण पुरुषोत्तम परमात्माने प्रथम ब्रह्माजीको दीया है और ब्रह्माजीने अपने सिद्ध आदित्य, अंगिरा जैसे अनेक ऋषिमुनिओकों दिया है। इसलिए वेद किसीका द्वारा लिखा गया ग्रंथ नहीं है। यह वेद अपौरुषेय कहा जाता है। अन्य जो ग्रंथ हो, जैसे रामायण, महाभारत, श्रीमत् सत्संगीजीवन आदि ग्रंथ, उनके लिखनेका समय होता है और लेखक होते है किन्तु वेद तो स्वयं परमात्माके मुखसे कहा गया ज्ञानभंडार है।
सत्युगमें एक वेद कहनेसे संपूर्ण ज्ञानका परिचय होता था किन्तु कलियुगके प्रारंभ होते हुए भगवान बादरायणने वेदका ज्ञान समाजको उपयोगी हो शके, उस उत्तम हेतुसे वेदको चार विभागमें निरुपण कर दीया। जो आज हमे उपलब्ध है। वह है, ऋगवेग, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। चार वेदोंके एक एक उपवेद भी है जो इस प्रकार है। ऋगवेदका आयुर्वेद है और यजुर्वेदका धनुर्वेद है। सामवेदका गंधर्ववेद है और अथर्ववेदका स्थापत्यवेद है।
एक ऋगवेदमें प्रायः ११ हजार मंत्र रहते हैं और उस मंत्रमें बहुत रहस्य तो है ही, साथमें पुरे विश्वके उपयोगी हो, ऐसी चिकित्सा भी बताई गई है। मानस चिकित्सा, सूर्य पद्धतिसे की जाने वाली चिकित्सा, वायुसे होने वाली चिकित्सा, जलसे होने वाली चिकित्सा और यज्ञ द्वारा होने वाली चिकित्सा भी बताई गई है।
यजुर्वेदमें विविध प्रकारके यज्ञ और यज्ञका फल बताया गया है। कृषिविषयक बहुत विशलेषण भी उससे प्राप्त होता है। सामवेदमें गायन विद्याका पुरा निरुपण रहता है। पुरे विश्वमें नहीं दिखाई देनेवाला, संगीतका दर्शन भी सामवेदसे हो सकता है। अथर्ववेदमें पशुओके उपयोगीता का निरुपण, गौमाताकी विशेषता बताई गई है। जड़ीबुटीका उपयोग भी वहां प्राप्त होता है।
इस तरह मानव जीवनके उपयोगी सभी बाते तथा परमात्मा तक पहोंचने का सिद्ध तरीका और उपसाना पद्धति, जीवन जीनेकी रीत, सब कुछ वेदमें बताया गया है। वेदके सभी मंत्रोमें शक्ति और सामर्थ्य रहता है। निश्चित समय पर गुरुमुख प्राप्त मंत्रको सिद्ध करनेसे अकल्पनीय ऐश्वर्यका साक्षात्कार भी होता है। इसलिए कहा गया है कि वेद माता है, वेद पिता है, वेद अमृत है, वेद सर्वस्व है, वेद साक्षात परमात्मा है।
ऐसे वेदके पवित्र मंत्र, पवित्र महात्मासे कहा गया या पवित्र पृथ्वीके देव जैसे ब्रह्मणके मुख से कहा गया, मंत्र सुननेका मौका मिले तो हमारे भी भाग्योदय हो जाता है। इसलिए तो स्वामिनारायण संप्रदायके प्रायः विद्वान संतगण वेदके पुरुषशुक्तका पाठ अवश्य करतें है।
स्वामिनारायण भगवानने शिक्षापत्रीमें कहा है कि वेद हमारा सर्वोत्तम शास्त्र है, और प्रथम शास्त्र है। वेदके विषयमें कही जाने वाली कथा सुनते रहीए और मंत्रका श्रवण करते रहीए तो अंतरमें भी परम शांतिका अनुभव होता है। समय समय पर श्रवण द्वारा वेदामृत पान होना चाहिए। वेदोंकी कथा या वेदविषयक कथाका श्रवण, मनन और निधिध्यास भी होना चाहिए, यतः वेद ही जीवनका तो सर्वस्व है।